श्री सांईं चालीसा: Shri Sai Baba Chalisa Paath Lyrics
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।। दोहा ।।
माथ नाय श्री गुरू चरण, बिनवऊं सिद्ध गणेश ।
बरनऊं सांई बिसद जस, सुमिरत मिटहिं कलेश ।।
चरण-कमल महिं शरण दो, बाबा सांई नाथ ।
भक्तबछल करूणायतन, मैं सब भांति अनाथ ।।
।। चौपाई।।
जय समर्थ सांई सरवेश्वर ।
जय दत्तात्रय जय अखिलेश्वर ।।1।।
जय कृपालु हे कृष्ण कन्हाई ।
पढरपुर के बिट्ठल सांई ।।2।।
रामचन्द्र जी के अवतारा ।
तिंहू लोक जस को विस्तारा ।।3।।
पावन परम चरित्र तिहारे ।
तीन ताप सो तुरत निवारे ।।4।।
उर धारिअ सांई जस पावन ।
कलि-मल-हरन सकल भय तारन ॥5।।
सांई सरन सहज गति आवे ।
संसृति – सागर सबहि सुखावे ।।6।।
दुखित भक्त पर सांई दयालु ।
बिनु कारण उपकारि कृपालु ।।7।।
हरिणाकश्यपु कलिजुग क्लेशा ।
श्री सांई नरकेहरि वेशा ।।8।।
जन प्रहलाद त्रास को टारो ।
विपद-निसाचर उदर बिदारो ।।9।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा ।
सांई सब मेटे संतापा ।।10।।
अष्ट सिद्धि, नवनिधि तव चेरी ।
तदपि न तृष्णा वैभव केरी ।।11।।
शिव विभूति खट्वांग विभूति ।
ब्याल, कपाल, गंग अरू बूटी ।।12।।
आसन टाट धरी तन कफानी।
सांई साधी माया नटनी ।।13।।
सांई शिव संपति के दाता ।
आत्म-क्रीड परमानन्द राता ।।14।।
स्वात्माराम विषय नहीं भावे ।
मुक्त-हस्त वैभव बरसावे ।।15।।
ज्ञान, मान के अवढर दानी।
अपनायो अति नीचहि प्रानी ।।16।।
भूत, भविष्य काल-गीत-स्वामी ।
योगेश्वर अव्यक्त अनामी ।।17।।
चरण-धूलि जिन सीसा धरी है।
सांई तिन पर दया करी है ।।18।।
जिन विभूति को कियो प्रयोग ।
मिटे तुरत सब जग के रोगा ।।19।।
कृपा दृष्टि जब सांई निहारे ।
गूंगा ज्ञान अगम्य उचारे ।।20।।
दिव्य तेज मुख सदा बिराजा ।
सुराधीश लख वैभव लाजा ।।21।।
जुड़ा द्वारकामाई समाजू।
शिरडी पावन तीरथ राजू ।।22।।
सांई संगम जहां बुलायो ।
पाप-पुंज फल माहिं नसायो ।।23।।
भक्त -हेतु नानां तनु धारी।
सांई महिमा अमित तुम्हारी ।।24।।
कलिमल-विपट कुठारी सांई ।
भसूत- हनन कपि-कुंजर नाई ।।25।।
निर्धन जन तुम बने कुबेरा।
ज्ञान-दीप, अज्ञान अंधेरा ।।26।।
करूणाकर तुम सौख्या लुटाओ।
जन का सुख निज सीस चढ़ायो ।।27।।
कृपा तुम्हारी अनन्त अपारा।
गगन सदृश्य व्यापक विस्तारा ।।28।।
दया- सिंधु तुम अगम अगाधा ।
जन को सरल सुगम निर्बाधा ।।29।।
कल्प वृक्ष शीतलतादायी ।
चिंतामणि चिंताहर सांई ।।30।।
कामधेनु अभिमत फलदाता ।
सिद्धि-ऋद्धि, सुख, वैभव दाता ।।31।।
तुम उदार सीतापति जैसे ।
अपनायो जिन चितव अनैसे ।।32।।
बिसर गयो जन तुम नहिं भूले।
मो पर सदा रहहु अनुकूले ।।33।।
प्रनवउं सांई नमामि नमामी ।
मैं सकाम तुम सदा अकामी ।।34।।
शरण तिहारी लाज निभाओ ।
गहो बांह भव पार लगाओ ।।35।।
सुमिरत सांई नाम तिहारो ।
सारद आई विरद संभारो ।।36।।
श्रद्धा उर धर सांई जपै नित।
निर्मल मति अति शांत होय चित ।।37।।
सांई सनाथ किये अगनित जन ।
दे दी सद्गति संत परमधन ।।38।।
पारब्रह्म हे – नित्य अगोचर ।
कदऊं भक्त हेतु दृग्गोचर ।।39।।
बंदउं पुनि-पुनि सांई नाथा ।
करहु कृपा धर सिर पर हाथा ।।40।।
।। दोहा ।।
चालीसा यह नित पढ़े, जो श्रद्धा उर आनि ।
पाइ पदारथ चारिहौं, सांई करै कल्यान ।।
भक्त-हृदय निर्मल गगन, सांई चन्द्र समान ।
विकसित भक्ति-कुमोदिनी, सदा रहउ अम्लान ।।
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