Chanakya Niti Chapter 7 Translation in Hindi/चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित
चाणक्य नीति – सप्तम अध्याय का श्लोकों का हिंदी अनुवाद:
॥ चाणक्य नीति – सप्तमोऽध्यायः ॥
(श्लोकवार हिन्दी अनुवाद एवं भावार्थ)
अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च ।
वञ्चनं चापमानं च मतिमान्न प्रकाशयेत् ॥1॥
Hindi Translation: अर्थ का नाश, मन का दुख, घर के बुरे व्यवहार, छल और अपमान – इन बातों को बुद्धिमान व्यक्ति किसी से प्रकट नहीं करता।
भावार्थ: अपनी परेशानियों और अपमानजनक घटनाओं को सबके सामने बताना बुद्धिमानी नहीं है। इन्हें छुपाकर रखना ही उचित है।
धनधान्यप्रयोगेषु विद्यासङ्ग्रहणे तथा ।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ॥2॥
Hindi Translation: धन-धान्य के प्रयोग में, विद्या अर्जन में, भोजन में और व्यवहार में – इन बातों में लज्जा छोड़ने वाला व्यक्ति सुखी रहता है।
भावार्थ: जरूरी कार्यों में संकोच नहीं करना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।
सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च ।
न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम् ॥3॥
Hindi Translation: जो लोग संतोष के अमृत से तृप्त होते हैं, उन्हें जो सुख और शांति मिलती है, वह धन के लोभी, इधर-उधर भागने वालों को नहीं मिलती।
भावार्थ: सच्चा सुख धन में नहीं, बल्कि संतोष और मन की शांति में है।
सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने ।
त्रिषु चैव न कर्तव्योऽध्ययने जपदानयोः ॥4॥
Hindi Translation: तीन बातों में संतोष रखना चाहिए – अपनी पत्नी, भोजन और धन में। लेकिन तीन कार्यों में कभी संतोष नहीं करना चाहिए – अध्ययन, जप और दान में।
भावार्थ: भोग-विलास में संयम और विद्या, साधना, दान में निरंतर वृद्धि व प्रयास होना चाहिए।
विप्रयोर्विप्रवह्न्योश्च दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः ।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च ॥5॥
Hindi Translation: दो ब्राह्मणों के बीच, दो अग्नियों के बीच, पति-पत्नी के बीच, स्वामी-भृत्य के बीच और हल-बैल के बीच से नहीं गुजरना चाहिए।
भावार्थ: यह शिष्टाचार और सुरक्षा दोनों दृष्टियों से आवश्यक है।
पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरुं ब्राह्मणमेव च ।
नैव गां न कुमारीं च न वृद्धं न शिशुं तथा ॥6॥
Hindi Translation: पैरों से कभी अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कन्या, वृद्ध या बच्चे को नहीं छूना चाहिए।
भावार्थ: यह सम्मान और आदर का प्रतीक है।
शकटं पञ्चहस्तेन दशहस्तेन वाजिनम् ।
गजं हस्तसहस्रेण देशत्यागेन दुर्जनम् ॥7॥
Hindi Translation: गाड़ी से पाँच हाथ, घोड़े से दस हाथ, हाथी से हज़ार हाथ दूर रहना चाहिए, और दुर्जन से तो देश छोड़कर भी दूर रहना चाहिए।
भावार्थ: दुर्जन की संगति सबसे खतरनाक होती है।
हस्ती अङ्कुशमात्रेण वाजी हस्तेन ताड्यते ।
शृङ्गी लगुडहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः ॥8॥
Hindi Translation: हाथी अंकुश से, घोड़ा हाथ से, सींग वाले को डंडे से और शस्त्रधारी दुर्जन को तलवार से वश में किया जाता है।
भावार्थ: हर परिस्थिति में उपयुक्त साधन का प्रयोग करना चाहिए।
तुष्यन्ति भोजने विप्रा मयूरा घनगर्जिते ।
साधवः परसम्पत्तौ खलाः परविपत्तिषु ॥9॥
Hindi Translation: ब्राह्मण भोजन से, मोर बादल की गर्जना से, सज्जन दूसरों की समृद्धि से और दुष्ट दूसरों की विपत्ति से प्रसन्न होते हैं।
भावार्थ: सज्जन और दुष्ट की मानसिकता का अंतर यही है।
अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम् ।
आत्मतुल्यबलं शत्रुं विनयेन बलेन वा ॥10॥
Hindi Translation: बलवान के साथ सहयोग, दुर्जन के विपरीत, और समान शक्ति वाले शत्रु से विनय या बल से व्यवहार करना चाहिए।
भावार्थ: नीति के अनुसार आचरण ही बुद्धिमत्ता है।
बाहुवीर्यं बलं राज्ञां ब्रह्मणो ब्रह्मविद्बली ।
रूपयौवनमाधुर्यं स्त्रीणां बलमनुत्तमम् ॥11॥
Hindi Translation: राजाओं का बल बाहुबल है, ब्राह्मण का बल विद्या है, और स्त्रियों का बल रूप, यौवन और माधुर्य है।
नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम् ।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ॥12॥
Hindi Translation: अत्यधिक सरल नहीं होना चाहिए – जंगल में देखो, सीधे पेड़ काट दिए जाते हैं, और टेढ़े पेड़ खड़े रहते हैं।
भावार्थ: अत्यधिक भोलापन भी नुकसानदायक है।
यत्रोदकं तत्र वसन्ति हंसास्तथैव शुष्कं परिवर्जयन्ति ।
न हंसतुल्येन नरेण भाव्यंपुनस्त्यजन्तः पुनराश्रयन्ते ॥13॥
Hindi Translation: जहाँ जल होता है, हंस वहीं रहते हैं, सूखे स्थान को छोड़ देते हैं। मनुष्य को हंस की तरह नहीं होना चाहिए जो बार-बार स्थान बदलता है।
उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम् ।
तडागोदरसंस्थानां परीवाह इवाम्भसाम् ॥14॥
Hindi Translation: कमाए हुए धन की रक्षा त्याग (दान) से होती है, जैसे तालाब में जल की रक्षा नहर से होती है।
यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवाः ।
यस्यार्थाः स पुमाँल्लोके यस्यार्थाः स च पण्डितः ॥15॥
Hindi Translation: जिसके पास धन है, उसके मित्र हैं, बंधु हैं, वही इस संसार में पुरुष और पंडित कहलाता है।
स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे ।
दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च ॥16॥
Hindi Translation: स्वर्गवासी पुरुषों के शरीर में चार लक्षण होते हैं – दान की प्रवृत्ति, मधुर वाणी, देवपूजा और ब्राह्मण संतुष्टि।
अत्यन्तकोपः कटुका च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम् ।
नीचप्रसङ्गः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् ॥17॥
Hindi Translation: अत्यधिक क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, अपने ही लोगों से वैर, नीच संगति और कुलहीन सेवा – ये नरकवासी व्यक्तियों के लक्षण हैं।
गम्यते यदि मृगेन्द्रमन्दिरं लभ्यते करिकपालमौक्तिकम् ।
जम्बुकालयगते च प्राप्यते वत्सपुच्छखरचर्मखण्डनम् ॥18॥
Hindi Translation: यदि सिंह के गुफा में जाओ तो हाथी के मस्तक का मोती मिलेगा, और यदि लोमड़ी के गुफा में जाओ तो केवल बछड़े की पूँछ और गधे की खाल मिलेगी।
भावार्थ: जहाँ जाओगे, वैसा ही फल मिलेगा।
शुनः पुच्छमिव व्यर्थं जीवितं विद्यया विना ।
न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे ॥19॥
Hindi Translation: विद्या के बिना जीवन कुत्ते की पूँछ के समान व्यर्थ है, जो न तो गुप्त अंग ढक सकती है, न ही डंक से बचा सकती है।
वाचां शौचं च मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वभूतदयाशौचमेतच्छौचं परार्थिनाम् ॥20॥
Hindi Translation: वाणी की पवित्रता, मन की पवित्रता, इन्द्रियों का संयम और सब जीवों पर दया – यही पवित्रता है।
पुष्पे गन्धं तिले तैलं काष्ठेऽग्निं पयसि घृतम् ।
इक्षौ गुडं तथा देहे पश्यात्मानं विवेकतः ॥21॥
Hindi Translation: जैसे फूल में सुगंध, तिल में तेल, लकड़ी में अग्नि, दूध में घी, गन्ने में गुड़ – वैसे ही विवेक से अपने भीतर आत्मा को देखो।
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