Important Sutras in Sanskrit Grammar/ संज्ञा सूत्र संस्कृत में 

संज्ञा प्रकरण/ संज्ञा सूत्र संस्कृत में 

1. संहिता 👇

परः सन्निकर्षः संहिता। वर्णानामतिशयितः सन्निधिः संहितासंज्ञः स्यात्। 

-अतिशयित सामीप्य' की संज्ञा 'संहिता' है। 
जैसे -सुधी + उपास्यः। 

2. गुण: 👇

अदेङगुणः।  च गुणसंज्ञः स्यात्। 

-यहाँ 'गुण' का एङ अत अर्थ है -'अ', 'ए' और 'ओ'। अर्थात 'अ', 'ए', 'ओ' की गुण संज्ञा है। 

3. वृद्धि : 👇

"वृद्धिरादैच"। आदैच्च वृद्धिसंज्ञः स्यात्। 

अर्थात - आ और ऐच्- ऐ, औ की वृद्धि संज्ञा होती है। 

4. प्रातिपदिक:👇

  "अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम्"।                     

अर्थात - धातु प्रत्यय और प्रत्ययान्त को छोड़कर अर्थवान शब्द स्वरूप की प्रातिपदिक संज्ञा होती है। 

5. नदी :👇
 
"यू  स्त्र्याख्यौ नदी"। 

अर्थात - ईकारान्त, ऊकारान्त नित्य स्त्रीलिंग शब्दों की नदी संज्ञा होती है। 

6.  घि: 👇
 
"शेषो घ्यसखि"। शेष इति स्पष्टार्थं। अनदी-संज्ञौ ह्रस्वौ याविदुतौ तदन्तं सखिवर्जं घि-संज्ञम् स्यात्। 

अर्थात - सखी शब्द को छोड़कर नदी संज्ञक से भिन्न ह्रस्व इकारान्त तथा उकारान्त शब्दों की घि संज्ञा होती है। 
यथा - हरि, रवि, भानु, विष्णु, आदि शब्द नदी संज्ञक न होकर, घि संज्ञक है।   

7. उपधा: 👇

"अलोन्त्यात्पूर्व उपधा"। 

अर्थात -अन्तिम अल प्रत्याहार से पूर्व वर्ण की उपधा संज्ञा होती है। 
जैसे- "राजन" शब्द में अंतिम अल न ठीक पूर्व वाले अ की उपधा संज्ञा होती है। 

8. अपृक्त: 👇
  
"अपृक्त एकाल प्रत्ययः"।   
              
अर्थात - एकाल =एक वर्ण रूप प्रत्यय की 'अपृक्त' संज्ञा होती है। 
यथा-'सु' का 'स', 'ति' का 'त' आदि एकाल प्रत्यय हैं। 

9. गति: 👇

'गतिश्च'। 

प्रादि(प्र, परा, आदि उपसर्गो) की क्रिया के योग में गतिसंज्ञा होती है। 
यथा - 'प्रधी' शब्द में 'प्र' उपसर्ग का क्रिया के साथ योग होने से यहाँ पर 'प्र' गतिसंज्ञक है। 

10. पद : 👇

"सुप्तिङ्गन्त पदम्"। 

सुबन्त और तिङ्न्त की पद संज्ञा होती है। 

अर्थात "सुप प्रत्यय तथा 'तिङ' प्रत्यय जिनके अंत में हो उन शब्दों की पद संज्ञा होती है। 

11. विभाषा 👇

"न वेति विभाषा"। 
अर्थात -निषेध और विकल्प को 'विभाषा' कहा जाता है। 

12. सवर्ण: 👇

"तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णं"।      
अर्थात -कंठ, तालु आदि स्थान तथा आभ्यंतर प्रयत्न से दोनों जिन वर्णों के समान हो वे वर्ण परस्पर सवर्ण संज्ञक होते है। 

13. टि: 👇

"अचोSन्त्यादि टि"।       
      अर्थात-स्वरों में जो अंतिम स्वर, वह जिस (वर्ण समुदाय) के समान हो, उस वर्ण समुदाय की संज्ञा 'टि' होती है। 

14. प्रगृह्य 👇

"ईदूदेद द्विवचनं प्रगृह्यम्"।        
अर्थात -'ई', 'ऊ' 'ए' जिसके अंत में हो ऐसे द्विवचन पदों की संज्ञा प्रगृह्य होती है। 
यथा -हरी पद हरि का द्विवचन रूप है, साथ की ईकारांत भी है। अतः ईकार की प्रगृह्य संज्ञा होगी।

15. सर्वनाम स्थान: 👇

"शि सर्वनामस्थानम्"। 
अर्थात- 'शि' की सर्वनामस्थान संज्ञा होती है। 
यथा-ज्ञान + इ, में, शि के शेषांश इकार की सर्वनाम स्थान संज्ञा है। 

16. निष्ठा: 👇

"क्तक्तवतू निष्ठा"।
अर्थात -क्त और क्तवतु प्रत्यय की निष्ठा संज्ञा होती है। 
 यथा - स्तुतः, स्नातः में 'क्त' प्रत्यय है।               

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