Best Sanskrit quotes for Instagram bio

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स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः। (गीता. ३/३५)
भावार्थ:
अपने धर्म में मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है। 

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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।(गीता.४/७)
भावार्थ:
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकाररूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। 

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परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। 
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।(गीता.४/८)
भावार्थ:
साधु पुरुषों के उद्धार करने के लिए पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने लिए ,मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ। 

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जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं। (गीता.४/९)
भावार्थ:
मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात निर्मल और अलौकिक हैं। 

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यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते। (गीता.४/२३)
भावार्थ:
यज्ञ सम्पादन के लिए कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भलीभाँति विलीन हो जातें हैं। 



यज्ञार्थात्कर्मणोSनयात्रा लोकोSयं कर्मबन्धनः। (गीता.३/९)
भावार्थ: 
यज्ञ के निमित्त किये जाने वाले कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्मों में यह मनुष्य समुदाय कर्मों से बँधता है। 


परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ। (गीता.३/११)
भावार्थ:
एक दूसरे को उन्नत करते हुए (तुम लोग) परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे। 

 
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात। (गीता.३/१३)

भावार्थ:
जो पापी लोग अपना शरीर पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं,  वे तो पाप को ही खाते हैं। 


अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।(गीता.३/१४)
भावार्थ:
सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि  है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ, विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। 


उद्योगसम्पन्नं समुपैति लक्ष्मीः। 
भावार्थ:
उद्योग-संपन्न मानव के पास ही लक्ष्मी आती है। 


सर्वो ही मन्यते लोक आत्मानं निरुपद्रवम। 
भावार्थ:
सभी लोग अपने आप को अच्छे समझते हैं। 


ज्ञात्वापि दोषमेव करोति लोकः। 
भावार्थ:
दोष को जानकर भी लोग दोष हि करते हैं। 


जननी जन्मभूमुश्च स्वर्गादपि गरीयसी। 
भावार्थ:
जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है। 


उपायेन हि यच्छक्यं तन्न शक्यं पराक्रमैः। 
भावार्थ:
जो काम उपाय से हो शकता है वह पराक्रम से नहीं होता। 


सर्वे मित्राणि समृद्धिकाले। 
भावार्थ:
समृद्धि काल में सब मित्र बनते हैं। 


मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। 
भावार्थ:
मन हि मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है। 


श्रद्धा ज्ञानं ददाति, नम्रता मानं ददाति, योग्यता स्थानं ददाति। 
भावार्थ:
श्रद्धा ज्ञान देती है, नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है। 


नैव तस्य कृतोनार्थे नाकृतेनेह कश्चन।(गीता.३/१८) 
भावार्थ:
उस महापुरुष का इस विश्व में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है  और न कर्मों के न करने से। 

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तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचरा। (गीता.३/१९)
भावार्थ:
इसलिए तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य कर्म को भलीभाँति करता रह। 


यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। 
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।(गीता.३/२१)

भावार्थ:
श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं, वह जो कुछ प्रमाणित कर देता है समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है। 

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