10 shlokas in Sanskrit with Hindi meaning

10 shlokas in Sanskrit with Hindi meaning

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Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-1

"अतितॄष्णां न कर्तव्या तृष्णां नैव परित्यजेत्। 

शनैः शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जित्।।" 

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning- 

किसी को भी अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए, पर फिरभी  इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए।  अपने से कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये। 

Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-2

"नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः।

बिक्रमार्जिताराज्यस्य स्वयमेव मृगेंद्रता।।"

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning-  

वन्य जीव शेर का राज्याभिषेक (पवित्र जल का छिड़काव ) तथा कतिपय कर्मकांड के संचालन के माध्यम से जातपोशी नहीं करते किन्तु वह अपने कौशल से ही कार्यभार और राज्यत्व को सहजता और  सरलता से धारण कर लेता है। 

Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-3

"नारिकेलसमाकारा दृश्यन्तेSपि हि सज्जनाः। 

अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः।।" 

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning- 

सज्जन (सहृदय वाले) व्यक्ति नारियल के समान होते हैं, अन्य व्यक्ति तो बदरी फल के समान केवल बाहर से ही अच्छे लगते हैं। 

Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-4

"उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्पारं बलम्। 

सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्।।" 

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning- 

उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों/उत्तम व्यक्ति का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उस्ताहित मनुष्य  के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। 

Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-5

 "लोभमूलानि पापानि संकटानि तथैव च। 

लोभात्प्रवर्तते वैरं अतिलोभात्विनश्यति।।"

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning-  

लोभ और पाप ये  सभी संकटों का मूल कारण है, लोभ करने वाला मनुष्य  विनाश को प्राप्त होता है। 

10 shlokas in Sanskrit with Hindi meaning

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Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-6

"सन्तोषः परमो लाभः सत्सङ्गः परमा गतिः। 

विचारः परमं ज्ञानं शमो हि परमं सुखम्।।" 

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning- 

संतोष परम बल है , सत्संग परम गति है, विचार परम ज्ञान है, और शाम परम सुख है। 

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Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-7

"कर्मफल-यदाचरति कल्याणि ! शुभं वा यदि वाSशुभम्। 

तदेव लभते भद्रे ! कर्त्ता कर्मजमात्मनः।।"  

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning- 

जो मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कर्म करता है, उस मनुष्य को वैसा ही फल मिलता है।  कर्त्ता (व्यक्ति) को अपने कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है। 

Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-8

"अनिर्वेदः श्रियो मूलं लाभस्य च शुभस्य च। 

महान भवत्यनिर्विण्णः सुखं चानन्त्यमश्नुते।।" 

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning- 

अपने काम में लगे रहनेवाला व्यक्ति सर्वदा  सुखी रहता है। धन-संपत्ति से उसका घर सदा भरा-पूरा रहता है। ऐसा व्यक्ति का ही यश-मान -सम्मान पाता है। 

Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-9

"रोहते सायकैर्विद्धं वनं परशुना हतम्। 

वाचा दुरुक्तं बीभत्सं न संरोहति वाक्क्षतम्।।" 

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning-

बाणों से छलनी और फरसे से कटा गया वन या जंगल पुनः हरा-भरा हो जाता है, लेकिन कटु-वचन (कटु वातोसे) से बना घाव कभी नहीं भरता। 

Sanskrit shlokas/संस्कृत श्लोक-10

"यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे। 

कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते।।" 

हिन्दी अनुवाद/ Hindi Meaning- 

दूसरे लोग जिसके कार्य, व्यवहार, गोपनीयता, सलाह और विचार को कार्य पूरा हो जाने के बाद ही जान पाते हैं, वही व्यक्ति "ज्ञानी" कहलाता जाता  है। 

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